क्रोध रूपी ज्वालामुखी की आग लेखनी प्रतियोगिता -31-Dec-2023
क्रोध रूपी ज्वालामुखी की आग
ललिता की आँखौ में बहुत तेज गुस्से की ज्वाला निकल रही थी। वह सोच रही थी जिन बेटौ के लिए उसने अपनी पूरी जवानी दाव पर लगादी वही बेटे आज उसकी परेशानी को क्यौ नहीं समझ रहे हैं।
आज उसके साथ जो कुछ हुआ उसको याद करके उसकी आँखौ से आँसुऔ का सैलाब रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।
आज सुबह जब बड़ा बेटा अपने ऑफिस जाने के लिए तैयार हुआ तब ललिता ने उससे कहा," संजू! मेरा चश्मा बहुत दिन पहले सोनू से गिरकर टूट गया था। तू इसे आज ठीक करवा लाना। मुझे मन्दिर जाने आने में बहुत परेशानी होती है।"
अपनी माँ की बात सुनकर संजय गुस्से से लाल होकर बोला," माँ! तुझसे कितनी बार कहा है कि मुझे जाते समय टोका मत कर ?लेकिन मेरी बात सुनती ही नहीं हो। मेरा पूरा दिन खराब कर दिया।"
ललिता चुप रह गई ।संजय की इस बात ने उसके ह्रदय कोअंदर तक हिलाकर रख दिया।
उसी समय संजय की पत्नी बाहर आकर बोली " माँ जी आप हमेशा इनके पीछे क्यौ पड़ी रहती हो? कभी अपने छोटे बेटे से भी कह दिया करो। वह भी तो प्रतिदिन ऑफिस जाते हैं।"
कुछ समय बाद दूसरे बेटे को जाते हुए देखकर वह बोली," मनोज बेटा! मेरा चश्मा टूट गया है आफिस से आते समय इसे ठीक करवा लाना।"
"मम्मी मुझे आफिस में कितने काम होते हैं। वैसे भी आपको कहाँ जाना है जिसके लिए चश्मा चाहिए ?" इतना कहकर वह भी चला गया।
ललिता देवी को समझ में नहीं आरहा था कि इन सभी को क्या हो गया है। एक छोटे से काम को कितना बड़ा काम बना दिया गया।
ललिता देवी के तीन बेटे थे। ललिता देवी के पति आज से पन्द्रह साल पहले ही एक रोड एक्सीडेंट में चल बसे थे। लेकिन ललिता ने इतनी बड़ी आपत्ति का सामना किया और तीनों बच्चौ को काबिल बनाकर उनके घर भी बसाये। ललिता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और न कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि इनके सिर से बाप का साया उठ गया है। आज वही बेटे उनके चश्मे को ठीक करवाकर नहीं दे सकते हैं। ललिता देवी की अपने तीसरे बेटे से कहने की हिम्मत ही नहीं हुई।
ललिता देवी पूरे दिन इसी विषय में सोचती रही कि इस तरह तो दिन प्रतिदिन हालात और खराब होते जायेंगे।
ललिता देवी जब रात को अपने कमरे में अकेली बैठी थी तब अपने पति की तस्वीर को अपने हाथ में लेकर बोली," आप तो मुझे इस मझधार में अकेला छोड़कर चलेगये मैंने इन तीनों को किस तरह लायक बनाया यह तो किसीसे छिपा नहीं है। लेकिन आज यह मुझे ही आँख दिखा रहे हैं। अब मुझसे यह सहन नहीं होरहा मैं अभी इतनी कमजोर नहीं हूँ? मैं इनको सबक सिखाकर रहूँगी।" इतना कहकर ललिता की मुट्ठियां कस गई और उसकी आँखौ से ज्वालामुखी की ज्वाला निकलने लगी।
ललिता देवी के मस्तिष्क में एक खतरनाक प्लान घूमने लगा। उन्होंने इस मकान से तीनौ बेटौ को बाहर का रास्ता दिखाकर उनको सबक सिखाने की ठान ली।
ललिता देवी के पति के दोस्त राममूर्ति प्रापर्टीज की सेल परचेज का काम करते थे।दूसरे दिन बेटौ को ऑफिस जाने के बाद ललिता जी ने उनको घर बुलाकर अपना मकान बेचकर स्वयं बृद्धाश्रम में जाकर असहाय बुजुर्ग दम्पत्तियौ की सेवा करने की बात कही।
पहले तो राममूर्ति ने उनको समझाने की कोशिश की लेकिन ललिता की जिद के आगे वह झुक गये और मकान का सौदा कर दिया। जब ललिता के तीनौ बेटौ को मालूम हुआ तब वह अपनी करनी पर पछताने लगे। लेकिन तबतक बहुत देर होचुकी थी।
अंत में वही हुआ जो ललिता को मंजूर था अपनी भूल के कारण तीनौ बेटौ को किराए का मकान देखना पड़ा। ललिता जी बृद्धाश्रम में रहकर असहाय बुजुर्गौ की सेवा करने लगी।
इस तरह छोटी सी भूल ने पूरे परिवार को क्रोध रूपी ज्वालामुखी की आग ने अलग थलग कर दिया।
Mohammed urooj khan
18-Jan-2024 01:15 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
Reply
Gunjan Kamal
08-Jan-2024 09:23 PM
👏👌
Reply
Madhumita
07-Jan-2024 06:39 PM
Nice
Reply